प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2020-2021 की पहली तिमाही में जीडीपी में रिकॉर्ड गिरावट ने कई वर्षों की आर्थिक प्रगति पर एक झटके में पानी फेर दिया तथा प्रधानमंत्री मोदी के सपने को लगभग नामुमकिन बना दिया है।
देश की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2020-2021 की पहली तिमाही में जीडीपी में रिकॉर्ड गिरावट ने कई वर्षों की आर्थिक प्रगति पर एक झटके में पानी फेर दिया तथा प्रधानमंत्री मोदी के सपने को लगभग नामुमकिन बना दिया है। वित्त वर्ष 2020-2021 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है, जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बड़ी गिरावट है। इसके कारण जापानी वित्तीय होल्डिंग कंपनी नोमूरा होल्डिंग्स, इंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी के अनुमान को घटाकर -10.8 फीसदी कर दिया है। इससे एक बार फिर सबकी नजरें केंद्र सरकार और आरबीआई पर टिक गई हैं कि विकास को गति देने के लिए अब वे क्या उपाय करते हैं।
बैंक कर्ज देने से कतरा रहे हैं
गौरतलब है कि भारत ने कई वर्षों तक 8 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल की, लेकिन हाल के सालों में बैंकिंग संकट के कारण अर्थव्यवस्था में उधारी और खपत प्रभावित हुई, अब कोरोना वायरस संक्रमण के कारण अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ है, उससे उबरने में लंबा समय लगेगा। बैड लोन बढ़ने की आशंका से बैंक कर्ज देने से कतरा रहे हैं, जबकि कंपनियों ने कर्ज और निवेश में कमी कर दी है जिससे मांग घट गई है।
नीतिगत दरों में 115 अंकों की कटौती
भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए किए गए प्रोत्साहन उपायों का बोझ उठाया है, उसने नीतिगत दरों में 115 अंकों की कटौती की है, बॉन्ड खरीद और ऑपरेशन ट्विस्ट जैसे लिक्विडिटी ऑपरेशंस के जरिए फाइनेंशिल सिस्टम में पैसे डाले और केंद्र सरकार को लाभांश के तौर पर अरबों डॉलर ट्रांसफर किए। 31 अगस्त को आरबीआई ने बॉन्ड मार्केट को सहारा देने के लिए अतिरिक्त उपाय किए, बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों को अपने पास रखने के लिए कई तरह की छूट दी और अरबों डॉलर का अतिरिक्त फंड देने की घोषणा की।
महंगाई दर 6 फीसदी के उपर चली गई है
जहां तक पंरपरागत मौद्रिक नीति की बात है तो आरबीआई के पास सीमित गुंजाइश है। बैंकों ने दरों में कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाने में तेजी नहीं दिखाई है, इसकी वजह यह है कि फंसे कर्ज के कारण क्रेडिट ग्रोथ नहीं हो पा रही है, महंगाई दर 6 फीसदी के उपर चली गई है और आरबीआई सतर्क रुख दिखा रहा है। कोरोना संकट ने अर्थव्यवस्था को बेहाल कर दिया है और इसे पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की, लेकिन इसमें अधिकांश उपाय सीधी मदद देने के बजाय छोटे और मझोले कारोबारियों को क्रेडिट सपोर्ट पर फोकस हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्र सरकार को एक युनिवर्सल बेसिक इनकम ग्रांट मुहैया करानी चाहिए और आरबीआई को राजकोषीय घाटे को फाइनेंस करना चाहिए। केंद्र सरकार ने इसे जीडीपी का 3.5 फीसदी रखने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन यह इससे दोगुना हो सकता है।