जाति जनगणना का मुद्दा पूरे देश में विपक्ष लगातार उठा रहा है। अब इसे लेकर दाखिल एक याचिका पर विचार करने से देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। दरअसल, पी. प्रसाद नायडू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, इसमें सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने की मांग की गई थी। हालांकि, शीर्ष अदालत की अनुमति के बाद याचिकाकर्ता पी. प्रसाद नायडू ने अपनी याचिका वापस ले ली।
सुप्रीम कोर्ट ने गेंद केंद्र के पाले में डाला
जाति गणना मामले में हस्तक्षेप करने से देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 2 सितंबर 2024 को इंकार कर दिया है। शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला सरकार के दायरे में आता है और नीतिगत मामला है। इस प्रकार पर सुप्रीम कोर्ट ने अब गेंद को केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से मना कर दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और उसने अपनी याचिका वापस ले ली। दरअसल, पी. प्रसाद नायडू ने वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने सोमवार को यह सुनवाई की।
इस बारे में क्या किया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं से कहा कि इस बारे में क्या किया जा सकता है, यह मुद्दा शासन के दायरे में आता है, यह नीतिगत मामला है। अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला ने तर्क दिया कि कई देशों ने ऐसा किया है, लेकिन भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि 1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।
हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि वह याचिका खारिज कर रही है, क्योंकि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अदालत के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया। नायडू ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियां 2021 की जनगणना को बार बार स्थगित कर रही हैं। दरअसल, याचिका में कहा गया कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद करेगी। 1931 का अंतिम जाति-वार डेटा पुराना हो चुका है। गौरतलब है कि, जनगणना और सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना से सटीक डेटा केंद्र सरकार के लिए सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 2011 में आयोजित एसईसीसी का उद्देश्य जाति संबंधी जानकारी समेता सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर व्यापक डेटा एकत्र करना था।