उत्तर प्रदेश के अयोध्या में प्रभु श्री राम का अवतार, मथुरा में श्री कृष्ण का अवतार और ऐसे ही उत्तर प्रदेश के ही संभल में भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि भगवान का अवतार होगा और ये मंदिर सर्वे वाली शाही जामा मस्जिद से करीब 200 मीटर दूर है। हिंदू पक्ष ने ये दावा किया हुआ है कि जामा मस्जिद की जगह पर श्री हरिहर मंदिर है और दावा ये भी है कि मुगल शासक बाबर के शासनकाल में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। अतीत के आईने से विवाद को देखेंगे तो उसमें साफ हो जाता है कि संभल में मंदिर-मस्जिद विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि करीब 146 साल पुराना है। शुरुआत 1878 में हुई थी और इसमें फैसला हिंदू पक्ष के खिलाफ गया था और फिर इसके बाद 1976 में मस्जिद पर हमला हुआ, इमाम की हत्या कर दी गई और दंगा भड़क गया, जिसके बाद करीब एक महीने का कर्फ्यू संभल ने झेला।
मंदिर-मस्जिद को लेकर है विवाद
साल 1976 में संभल में हुए दंगे के बाद हिंदू और मुस्लिम बंट गए, कोट गर्बी रोड़ पर मुस्लिम आबादी और कोट पूर्वी रोड़ पर हिंदू आबादी का बसेरा हो गया, अब नजदीक से समझिए विवाद, साल 1878 में सबसे पहले जामा मस्जिद के मंदिर होने का दावा किया गया। 1878 में शाही जामा मस्जिद को लेकर पहली बार कानूनी विवाद हुआ, हिंदू पक्ष ने मुरादाबाद की अदालत में याचिका लगाई। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद प्राचीन हिंदू मंदिर की जगह पर बनाई गई थी, फिर इस पूरे मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, उस वक्त मुख्य न्यायधीश रहे सर रॉबर्ट स्टुअर्ट ने हिंदू पक्ष की अपील को खारिज कर दिया था और सबसे बड़ी बात ये है कि हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाही भी काफी कमजोर थी, उसकी बड़ी वजह ये भी थी कि वो कभी खुद भी मस्जिद के अंदर दाखिल नहीं हुए थे और इस बात का जिक्र सरकारी गजट में भी मिलता है।
हिंदू वास्तुकला के हिसाब से है मस्जिद का गुंबद
उधर, एक दावा ब्रिटिश अफसर कार्लाइल के संभल दौरे के हवाले से भी किया जाता है। दरअसल, अंग्रेजों के शासन के दौरान 1874 में ब्रिटिश अफसर कार्लाइल संभल आए थे और उन्होंने शाही जामा मस्जिद का नजदीक से देखा था, जिसमें ये पाया कि मस्जिद का गुंबद हिंदू वास्तुकला के हिसाब से बना हुआ है और इसमें जो ईंट इस्तेमाल हुई है वो सभी मुस्लिमों के बनाए स्ट्रक्चर से मेल खाती है। लिहाजा कार्लाइल इस नतीजे पर पहुंचा कि मस्जिद की बनावट बाबर के समय से भी पुरानी हो सकती है और इसकी वास्तुकला बदायूं और जौनपुर की पठानी शैली की इमारतों से मिलती है।
1976 में संभल में भड़का था दंगा
मस्जिद से जुड़ा दूसरा विवाद इतना खतरनाक था कि उसने संभल का चैन सुकून छीन लिया था और संभल की शांति को एक दंगे ने खत्म कर दिया था। साल 1976 में शिवरात्री के दिन निकली जलतेरस यात्रा के दौरान भीड़ मस्जिद में घुस गई थी और भीड़ ने शाही जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद हुसैन की हत्या कर दी थी। आपको बता दें कि इमाम हुसैन की मजार मस्जिद में ही बनी हुई है। दरअसल, जलतेरस यात्रा के दौरान हिंदू समुदाय के लोगों ने मस्जिद में वुजूखाने के पास पूजा करनी चाही थी, जिसका मस्जिद में अकेले मौजूद इमाम मोहम्मद हुसैन ने विरोध किया और फिर उसके बाद इमाम की हत्या कर दी गई और उसके बाद संभल में दंगा भड़क गया।
स्कंद पुराण में मिलता है मंदिर का जिक्र
उत्तर प्रदेश के संभल जिले का इतिहास चारों युगों में मिलता है और इतना ही नहीं, चारों युगों में संभल जिले का अलग-अलग नामों का भी जिक्र किया गया है। दरअसल, सतयुग में इसका नाम सत्यव्रत, त्रेता में मेहदगिरी और द्वापरयुग में पिंगल नाम से जाना गया, जबकि कलयुग में संभल का नाम शंभवालय है यानि की भगवान शिव का घर और सतयुग में जब नाम सत्यव्रत हुआ तो इसका जिक्र स्कंद पुराण में हुआ है। इतना ही नहीं स्कंद पुराण के आखिरी खंड भूमिवारा में संभल के हर मंदिर का जिक्र है और श्री हरिहर मंदिर संभल के बीचों-बीच है। संभल में दो कोट हैं, इनका नाम भी कोट इसीलिए पड़ा, क्योंकि वे परकोटे के अंदर हैं। इसके पूर्व में बसे मोहल्ले को कोट पूर्वी और पश्चिम में बसे मोहल्ले को कोट गर्बी कहते हैं, इसी परकोटे के अंदर रहने वाले किसी परिवार में कल्कि भगवान पैदा होंगे, इस पूरे परकोटे को मंदिर कहा जाएगा।