केंद्र की मोदी सरकार ने तीन दशक के लंबे अंतराल के बाद बड़ा फैसला लेते हुए नई शिक्षा नीति लागू कर दी है, साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भी बदल दिया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम अब शिक्षा मंत्रालय होगा
केंद्र की मोदी सरकार ने तीन दशक के लंबे अंतराल यानि 34 वर्षों के बाद बड़ा फैसला लेते हुए नई शिक्षा नीति लागू कर दी है। केंद्र सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भी बदलकर अब शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। नई शिक्षा नीति में बेसिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं, जिससे बेसिक शिक्षा में लचीलापन लाने समेत क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है।
3–18 वर्ष के सभी बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण अनिवार्य शिक्षा करवाने का लक्ष्य
नई नीति में कक्षा 5 तक अनिवार्य रूप से तथा कक्षा 8 तक वैकल्पिक रूप से शिक्षा का माध्यम स्थानीय और मातृभाषा को रखने की सिफारिश की गई है, साथ ही वर्ष 2030 तक 3-18 वर्ष के सभी बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण अनिवार्य शिक्षा करवाने का लक्ष्य भी रखा गया है। केंद्र सरकार ने नई नीति में यह भी फैसला लिया है कि वर्ष 2030 तक देश के हर जिले में मल्टीएजुकेशन उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित किए जाएंगे।
नई शिक्षा नीति के लिए वर्ष 2015 में परामर्श प्रक्रिया को शुरू किया गया
ध्यान रहे कि वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई शिक्षा नीति पर काम शुरू कर दिया था, तत्कालिन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की पहल पर नई शिक्षा नीति के लिए वर्ष 2015 में परामर्श प्रक्रिया को शुरू किया गया था। देश भर के करीब ढाई लाख ग्राम पंचायत, 66000 ब्लॉक, 6000 शहरी निकायों, 676 जिलों तथा 36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में मई, 2015 से अक्टूबर, 2015 के बीच व्यापक सर्वे कराया गया था।
नई शिक्षा नीति की प्रक्रिया के लिए कस्तूरीरंगन कमिटी का गठन किया गया
इस पूरी प्रक्रिया के लिए डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमिटी का गठन किया गया था, इस कमेटी ने 31 मई, 2019 को अपनी रिपोर्ट पेश की, इस रिपोर्ट के आधार पर ही नई शिक्षा नीति तय की गई है। कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली कमिटी ने पिछले वर्ष केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को नई शिक्षा नीति का मसौदा सौंपा था, इस दौरान ही निशंक ने मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। नई शिक्षा नीति के मसौदे को विभिन्न पक्षकारों की राय के लिए सार्वजनिक किया गया था और मंत्रालय को इस पर दो लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए थे।
नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल पाठ्यक्रमों को बंद किया जाएगा
नई शिक्षा नीति के मुताबिक, बोर्ड परीक्षाएं जानकारी के अनुप्रयोग पर आधारित होंगी, नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल पाठ्यक्रमों को बंद किया जाएगा, मल्टिपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में पहले वर्ष के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे वर्ष के बाद डिप्लोमा और तीन-चार वर्ष बाद डिग्री दी जाएगी, उच्च शिक्षा में प्रमुख सुधारों में वर्ष 2035 तक 50 फीसदी सकल नामांकन अनुपात का लक्ष्य और एक से ज्यादा प्रवेश/एग्जिट का प्रावधान शामिल है।
देश में उच्च शिक्षा के लिए एक ही नियामक होगा
नई शिक्षा नीति के मुताबिक, देश में उच्च शिक्षा के लिए एक ही नियामक होगा, इसमें अप्रूवल और वित्त के लिए अलग-अलग वर्टिकल होंगे, यह नियामक ‘ऑनलाइन सेल्फ डिसक्लोजर बेस्ड ट्रांसपेरेंट सिस्टम’ पर काम करेगा, विधि (कानून) और चिकित्सा कॉलेजों को छोड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे, निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए साझा नियम होंगे, चार वर्ष का डिग्री प्रोग्राम फिर एमए और उसके बाद बिना एमफिल के सीधा पीएचडी कर सकते हैं।
वर्तमान में जो शिक्षा नीति लागू है, वह वर्ष 1986 में तैयार की गई थी
गौरतलब है कि वर्तमान में हमारे देश में जो शिक्षा नीति लागू है, वह वर्ष 1986 में तैयार की गई थी, इसे 1992 में संशोधित किया गया था, नई शिक्षा नीति लाने का मुद्दा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था। इसका मसौदा तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर भी विचार किया था।