
भारतीय संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले संत केशवानंद भारती का आज निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। केशवानंद भारती ने अंतिम सांस केरल के इदानीर मठ में ली।
भारती ने केरल भूमि सुधार कानून को दी थी चुनौती
संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले केशवानंद भारती अब इस दुनिया में नहीं रहे। केशवानंद भारती का आज यानि 6 सितंबर को दोपहर बाद 3 बजकर 30 मिनट में निधन हुआ। गौरतलब है कि चार दशक पहले केशवानंद भारती ने केरल भूमि सुधार कानून को चुनौती दी थी, जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिया और यह फैसला शीर्ष अदालत की अब तक सबसे बड़ी पीठ ने दिया था, जिसमें 13 न्यायाधीश शामिल थे।
केशवानंद भारती बनाम केरल पर 68 दिन सुनवाई चली
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले पर 68 दिन तक सुनवाई हुई थी और अब तक सुप्रीम कोर्ट में सबसे अधिक समय तक किसी मुकदमे पर चली सुनवाई के मामले में यह शीर्ष पर है। इस मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुई और 23 मार्च, 1973 को सुनवाई पूरी हुई। भारतीय संवैधानिक कानून में इस मामले की सबसे अधिक चर्चा होती है। मद्रास उच्च न्यायालय के रिटायर न्यायाधीश के चंद्रू से इस मामले के महत्व के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने पीटीआई से कहा कि ‘केशवानंद भारती मामले का महत्व इस पर आए फैसले की वजह से है जिसके मुताबिक, संविधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल ढांचे में नहीं।’
भारती के निधन पर मोदी-शाह ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट करके कहा कि हम पूज्य केशवानंद भारती जी को उनकी सामुदायिक सेवा और शोषितों को सशक्त करने के उनके प्रयासों के लिए हमेशा याद रखेंगे, उनका देश के संविधान और समृद्ध संस्कृति से गहरा लगाव था। वह पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। ओम शांति। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि एक महान दार्शनिक और द्रष्टा के रूप में स्वामी केशवानंद भारती जी का निधन राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति है, हमारी परंपरा और लोकाचार की रक्षा के लिए उनका योगदान समृद्ध और अविस्मरणीय है, उनको हमेशा भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा, उनके अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना।
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने शोक जताया
उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भारती ने निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वह विलक्षण प्रतिभा वाले दार्शनिक, शास्त्रीय गायक और सांस्कृतिक आइकन थे। नायडू ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के उस अहम फैसले में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है, जिसमें यह माना गया था कि संविधान की मूल संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यक्षगान को संरक्षण देकर उन्होंने कर्नाटक में इस पारंपरिक थिएटर को पुनर्जीवित करने का अहम कार्य किया था।