धर्म परिवर्तन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आज 30 अक्टूबर को एक अहम फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि महज विवाह के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है।
विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने की छूट दी है। दरअसल, याची ने परिवार वालों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की मांग की थी। अदालत ने विवाहित जोड़े की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया तथा कहा कि एक याची मुस्लिम तो दूसरा हिंदू है, लड़की ने 29 जून, 2020 को हिंदू धर्म स्वीकार किया और 1 महीने बाद 31 जुलाई को विवाह कर लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि रिकार्ड से स्पष्ट है कि विवाह करने के लिए धर्म परिवर्तन किया गया है।
विवाह के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं
जस्टिस एम सी त्रिपाठी की बेंच ने इसके लिए नूर जहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि विवाह के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है, इस केस में हिंदू लड़कियों ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से विवाह की थी, सवाल था कि क्या हिंदू लड़की धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से विवाह कर सकती है और यह विवाह वैध होगी। हाई कोर्ट ने कहा कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है, ऐसा करना इस्लाम के भी खिलाफ है। अदालत ने मुस्लिम से हिंदू बनकर विवाह करने वाली याची को राहत देने से इंकार कर दिया है। प्रियांशी उर्फ समरीन व अन्य की ओर से यह याचिका दायर की गई थी।