रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा कि 1971 का युद्ध इतिहास की उन चंद लड़ाइयों में से एक है जो किसी क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए या ताकत हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि मानवता और लोकतंत्र की गरिमा के लिए लड़ा गया था।
1971 का युद्ध लोकतंत्र की गरिमा के लिए लड़ा गया था
बेंगलुरु में स्वर्णिम विजय वर्ष के अवसर पर आज 22 अक्टूबर को भारतीय वायु सेना की ओर से आयोजित एक कॉन्क्लेव में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 1971 का युद्ध इतिहास की उन चंद लड़ाइयों में से एक है जो किसी क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए या ताकत हासिल करने के लिए नहीं लड़ा गया, इसका मुख्यर उद्देश्य् लोकतंत्र की गरिमा और मानवता की रक्षा करना था।
सलाहकार समिति की बैठक में शामिल हुए राजनाथ
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसदीय समिति की बैठक में कहा कि केंद्र सरकार फिलहाल मित्र देशों को नवीनीकृत हथियारों और उपकरणों के निर्यात के लिए दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दे रही है। रक्षा मामलों पर संसदीय सलाहकार समिति की बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने बेंगलुरु में कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों के पुराने हथियारों और उपकरणों को पहले रक्षा उद्योग द्वारा नवीनीकृत किया जाएगा और फिर उन्हें मित्र देशों को निर्यात किया जाएगा। राजनाथ सिंह ने कहा कि पुरानी रक्षा वस्तुओं का नवीनीकरण कर निर्यात के लिए ‘कार्यान्वयन दिशानिर्देशों’ को अंतिम रूप दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 2024-25 तक एयरोस्पेस और रक्षा वस्तुओं तथा सेवाओं में 35000 करोड़ रुपए (5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के निर्यात का लक्ष्य रखा है।
1971 का युद्ध इतिहास में सबसे छोटी सैन्यु लड़ाई थी
वायु सेना प्रमुख विवेक राम चौधरी ने कहा कि 1971 का युद्ध इतिहास में अब तक की सबसे छोटी सैन्यि लड़ाई थी, जिसमें भारत ने सबसे तेजी से जीत दर्ज की थी, इस युद्ध में 93 हजार पाकिस्ता नी सैनिकों ने आत्मतसमर्पण किया था, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद किसी सेना द्वारा किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण है। वायु सेना प्रमुख ने कहा कि भारतीय बलों ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर बेहतरीन लड़ाई लड़ी, हवा, जमीन और समुद्र में शानदार कौशल दिखाया, भारतीय सेनाएं पाक सेना पर हर क्षेत्र में हावी रहीं। सीडीएस बिपिन रावत ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को ऐतिहासिक घटना बताते हुएओ कि जिसने दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप के भूगोल को बदल दिया, मात्र 14 दिन के अंदर ही यह युद्ध सफलतापूर्वक खत्मन हो गया और बांग्लाादेश का उदय हुआ।