देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने आज आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले को हरी झंडी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार के फैसले पर अपनी मुहर लगाई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाया है, 3 जजों ने संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना है। 5 सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट्ट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला शामिल थे। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस भट्ट ने ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने पर अपनी असहमति जताई।
10 फीसदी ईडल्ब्यूएस आरक्षण वैध करार
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले 10 फीसदी ईडल्ब्यूएस आरक्षण पर आज 7 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा दी गई 10 फीसदी ईडल्ब्यूएस को वैध करार दिया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडल्ब्यूएस आरक्षण को सही करार दिया, उन्होंने कहा कि यह कोटा संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और भावना का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस माहेश्वरी के अलावा जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने ईडल्ब्यूएस आरक्षण के पक्ष में अपनी राय दी, उनके अलावा जस्टिस जेपी पारदीवाला ने भी गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को सही करार दिया।
ईडल्ब्यूएस आरक्षण को दी गई थी चुनौती
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का फैसला 10 फीसदी ईडल्ब्यूएस आरक्षण के विरुद्ध रहा, उन्होंने अपने फैसले में कहा कि गरीबी के आधार पर 10 आरक्षण देते समय एसी, एसटी और ओबीसी के गरीबों को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, यह भेदभाव है और संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है। हालांकि, 5 जजों की बेंच में से 3 जजों के 10 फीसदी ईडल्ब्यूएस आरक्षण को मंजूरी देने के चलते उसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला माना जाएगा। गौरतलब है कि संविधान में 103वें संशोधन के जरिए 2019 में संसद से 10 फीसदी ईडल्ब्यूएस आरक्षण को लेकर कानून पारित किया गया था, इस फैसले को कई याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने आज फैसला सुनाया है।